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मद्रास दिवस : एक शहर जो बदलता रहा, लेकिन अपनी जड़ें कभी नहीं भूला

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मद्रास दिवस : एक शहर जो बदलता रहा, लेकिन अपनी जड़ें कभी नहीं भूला

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नई दिल्ली, 22 अगस्त (आईएएनएस)। एक ऐसा शहर जहां मरीना बीच के शांत तटों से लेकर हलचल भरे मरीना मॉल हैं। कपालेश्वर मंदिर और पार्थसारथी मंदिर जैसे प्राचीन मंदिरों की आध्यात्मिक शांति है। भरतनाट्यम और कर्नाटक संगीत जैसे जीवंत सांस्कृतिक अनुभव, चेट्टिनाड के तीखे स्वाद से लेकर दक्षिण भारतीय शाकाहारी भोजन तक, हलचल भरे बाजार, शांत पार्क और मिलनसार लोग, एक अनूठा और अविस्मरणीय अनुभव प्रदान करने वाला चेन्नई 22 अगस्त को अपना जन्मदिन मना रहा है।

22 अगस्त को मद्रास दिवस है। यह एक ऐसा अवसर है जब हम तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के समृद्ध इतिहास को याद करते हैं। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई (तब मद्रास) की स्थापना की गई थी। ईस्ट इंडिया कंपनी के प्रशासक फ्रांसिस डे ने इसी दिन 1639 में स्थानीय शासकों से जमीन का एक टुकड़ा खरीदा था। फोर्ट सेंट जॉर्ज उसी स्थान पर खड़ा है।

इस किले के बाहर बस्तियां विकसित हुईं। आसपास के गांवों को एक साथ लाया गया। पुराने और नये शहर जुड़ गये। यह स्थान ब्रिटिशर्स के लिए भारतीय उपमहाद्वीप में व्यापारिक और प्रशासनिक गतिविधियों का केंद्र बन गया और आगे चलकर मद्रास के रूप में विकसित हुआ। तब से लेकर अब तक मद्रास में बहुत बदल चुका है। लेकिन इसके बावजूद शहर ने सदियों से अपनी सांस्कृतिक विरासत और आर्थिक महत्व को बनाए रखा है।

मद्रास शहर के नाम की उत्पत्ति के बारे में भी कई दिलचस्प बातें है। इतिहास सीएस श्रीनिवासचारी की पुस्तक “हिस्ट्री ऑफ मद्रास” में इसके बारे में कई अटकलें लगाई गई हैं। बताया जाता है कि मद्रास का नाम एक मछुआरे ‘माद्रेसन’ के ऊपर पड़ा। कुछ स्रोतों का दावा है कि ब्रिटिशों के आगमन से पहले भी मद्रास नाम का अस्तित्व था। एक अन्य दावे के अनुसार, पास में एक मदरसा या इस तरह के नाम का चर्च था, जिसके कारण इस नाम का प्रचलन हुआ। हालांकि, इनमें से किसी भी दावे के पीछे विशेष विश्वसनीयता नहीं है। अतीत में यह मद्रासपट्टनम था जहां पर पल्लव और चोल राजवंशों का शासन था।

1996 में, मद्रास का नाम बदलकर चेन्नई कर दिया गया था। यह महानगर आईटी, शिक्षा, चिकित्सा और कला के क्षेत्र में अपनी पहचान बना चुका है। चेन्नई की फिल्म इंडस्ट्री, जिसे ‘कॉलीवुड’ कहा जाता है, भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

पहली बार साल 2004 में मद्रास दिवस को मनाने की शुरुआत हुई थी। इस दिन को मनाने का शुरुआती विचार तीन लोगों का था – शहर के प्रसिद्ध इतिहासकार एस. मुथैया, पत्रकार शशि नायर और प्रकाशक विंसेंट डी सूजा। बाद में, अन्य लोग भी इसमें शामिल हुए। मद्रास दिवस चेन्नई के लोगों के लिए एकजुटता और गर्व का प्रतीक भी है। इस दिन विभिन्न कार्यक्रमों, चर्चाओं, प्रदर्शनी और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें शहर की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को प्रस्तुत किया जाता है। यह एक ऐसा समय होता है जब चेन्नई के लोग अपने शहर के इतिहास, संस्कृति और परंपराओं को समझने और सराहने का प्रयास करते हैं।

कहा जाता है कि चेन्नई का हर कोना अपनी एक कहानी कहता है। मद्रास दिवस पर इन अनसुनी कहानियों को सुनाने का कार्यक्रम भी होता है। इसके अलावा वृक्षारोपण अभियान, फील्ड ट्रिप, फोटोग्राफी प्रतियोगिताएं, इंटरैक्टिव मीडिया शो, प्रश्नोत्तरी आदि का भी आयोजन किया जाता है। जन भागीदारी बढ़ाने के लिए, मद्रास दिवस पर पूरे अगस्त महीने में कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।

हेरिटेज वॉक, स्कूल एक्सचेंज प्रोग्राम, वार्ता और प्रतियोगिताएं, कविता और संगीत और प्रश्नोत्तरी, भोजन उत्सव और रैलियां, फोटो प्रदर्शनियां और बाइक टूर… ऐसे और भी तरीके हैं जिनसे शहर जश्न मनाता है।

चेन्नई ने उन सभी लोगों के जीवन पर अपनी छाप छोड़ी है जो इस शहर को अपना घर मानते हैं, यहां अपना जीवन यापन करते हैं, यहां की सड़कों पर चलते हैं, चेन्नई की फ्रेंचाइजी क्रिकेट टीम के लिए उत्साह दिखाते हैं, पीले रंग से प्यार करते हैं, चाहें सड़कों पर भीड़ में फंसे रहते हैं, या मेट्रो रेल में नींद लेते हैं, सब्जियां खरीदते हैं, मरीना बीच, और फिल्टर कॉफी को धर्म से कम नहीं मानते हैं। इन सभी लोगों के लिए मद्रास दिवस बहुत खास है।

–आईएएनएस

एएस/केआर

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