मथुरा, 11 मार्च (आईएएनएस)। होली का त्योहार जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे देश के अलग-अलग हिस्सों में त्योहार का रंग देखने को मिल रहा है। हर जगह अपने पारंपरिक अंदाज में होली मनाया जा रहा है। इसी कड़ी में मंगलवार को गोकुल में छड़ी मार होली खेली गई। इस आयोजन में शामिल होने के लिए दूर-दूर से बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्रित हुए।
गोकुल में टेसू के फूलों के रंग और ब्रज के गीतों के साथ छड़ी मार होली का आयोजन हुआ। इसमें शामिल होने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचे। हजारों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं के बीच कन्हैया जी का डोला निकाला गया। सभी इस विशेष दिन का आनंद उठाते नजर आए।
भगवान श्री कृष्ण ने जिस गांव में अपने बचपन की लीलाएं की थी, उस गांव गोकुल में द्वापर युग की दिव्य होली को हर वर्ष जीवंत किया जाता है। देश-विदेश से श्रद्धालु भगवान द्वारा बचपन में खेली गई होली का दर्शन करने के लिए उत्साहित रहते हैं। गोकुल का आसमान अबीर और गुलाल के रंगों से रंग जाता है। जैसे ही भगवान का डोला स्वरूप मुरलीधर घाट पर पहुंची, तो कृष्ण के बाल स्वरूप पर गोपियों ने छड़ी बरसाना शुरू कर दिया। सभी छड़ी मार होली की मस्ती में सराबोर हो गए।
नंद किला मंदिर से मुरली घाट तक शोभायात्रा निकाली गई। आगे-आगे कान्हा की पालकी और पीछे-पीछे सुंदर वस्त्र पहने हुए हाथों में छड़ी लेकर चलती गोपियाें के साथ बैंड बाजों के साथ निकाली गई। पहले छड़ी फिर गुलाल और रंगों की होली ने माहौल रंगीन कर दिया।
छड़ीमार आयोजन में शामिल एक शख्स ने बताया, “बरसाने में लाठी मार होली होती है, लेकिन यहां पर छड़ी मार होली होती है। यहां पर भगवान कृष्ण का बाल रूप और यशोदा का वात्सल्य रूप है।”
एक महिला ने बताया, “साल में एक बार यहां छड़ीमार होली होती है। छड़ी मार खेलने के पीछे की वजह यह है कि हमारे कृष्ण भगवान गोकुल में छोटे थे। उन्हें चोट ना लग जाए, इसलिए हम छड़ीमार होली खेलते हैं। इस आयोजन में सभी को बहुत आनंद आता है, लोग दूर-दूर से देखने के लिए आते हैं।”
एक अन्य महिला पूनम ने बताया, “इस त्योहार का हम एक साल से बेसब्री से इंतजार करते हैं। आज बहुत खुशी हो रही है। गोकुल में भगवान के बाल स्वरूप होने के नाते हम यहां पर छड़ी मार होली खेलते हैं।”
–आईएएनएस
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