नई दिल्ली, 5 फरवरी (आईएएनएस)। अल्जाइमर रोग के मामलों में वैश्विक वृद्धि के बीच, बुधवार को एक अध्ययन से पता चला है कि मुंह और जीभ पर मौजूद बैक्टीरिया मस्तिष्क की खराब कार्यप्रणाली और न्यूरोडीजेनेरेटिव रोग के जोखिम का संकेत दे सकते हैं।
हमारे मुंह में कुछ बैक्टीरिया ऐसे होते हैं जो हमारी याददाश्त और ध्यान बढ़ा सकते हैं। लेकिन कुछ बैक्टीरिया ऐसे भी होते हैं जिनसे अल्जाइमर जैसी बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। ब्रिटेन के एक्सेटर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने यह बात बताई है।
इन वैज्ञानिकों ने पाया है कि हानिकारक बैक्टीरिया हमारे खून में जाकर हमारे दिमाग को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके अलावा, ये बैक्टीरिया हमारे शरीर में अच्छे और बुरे बैक्टीरिया के बीच संतुलन बिगाड़ सकते हैं।
इससे नाइट्रेट का नाइट्रिक ऑक्साइड में कन्वर्जन कम हो जाएगा – जो मस्तिष्क संचार और याददाश्त निर्माण के लिए महत्वपूर्ण रसायन है।
एक्सेटर मेडिकल स्कूल की प्रमुख शोधकर्ता डॉ जोआना लेहुरेक्स ने कहा, “हमारे शोध से पता चलता है कि कुछ बैक्टीरिया उम्र बढ़ने के साथ मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं।” लेहुरेक्स ने दांतों की जांच के दौरान बैक्टीरिया के स्तर को मापने और मस्तिष्क स्वास्थ्य में गिरावट के बहुत शुरुआती संकेतों का पता लगाने के लिए नियमित परीक्षण करने का आग्रह किया।
“पीएनएएस नेक्सस” नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन में 50 वर्ष से अधिक उम्र के 110 प्रतिभागियों को शामिल किया। ये प्रतिभागी एक ऑनलाइन अध्ययन से जुड़े थे जो मस्तिष्क स्वास्थ्य पर नजर रखता है। शोध दल ने मुंह के कुल्ले के नमूनों का विश्लेषण किया और उनमें मौजूद बैक्टीरिया की आबादी का अध्ययन किया।
परिणामों से पता चला कि जिन लोगों के मुंह में “नीसेरिया” और “हेमोफिलस” नामक बैक्टीरिया ग्रुप की संख्या अधिक थी, उनकी याददाश्त, ध्यान केंद्रित करने की क्षमता और जटिल कार्यों को करने की योग्यता बेहतर थी। इन लोगों के मुंह में नाइट्राइट का स्तर भी अधिक पाया गया।
दूसरी ओर, पोर्फिरोमोनास नामक बैक्टीरिया की अधिक मात्रा वाले लोगों में याददाश्त की समस्याएं अधिक देखी गईं।
जबकि प्रेवोटेला नामक बैक्टीरिया समूह नाइट्राइट के निम्न स्तर से जुड़ा था। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इससे मस्तिष्क स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है। यह बैक्टीरिया उन लोगों में अधिक पाया गया जिनमें अल्जाइमर रोग का जोखिम जीन एपीओई4 है।
एक्सेटर मेडिकल स्कूल की प्रोफेसर ऐनी कॉर्बेट ने कहा कि इन निष्कर्षों से “आहार में बदलाव, प्रोबायोटिक्स, मुंह की स्वच्छता की दिनचर्या या यहां तक कि लक्षित उपचार” जैसे समाधान मिल सकते हैं, जो डिमेंशिया को रोकने में मदद कर सकते हैं।
–आईएएनएस
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