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60 फीसदी लोग सोचते हैं कि टॉयलेट में वायरस पनपने का सबसे ज्यादा खतरा होता है

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60 फीसदी लोग सोचते हैं कि टॉयलेट में वायरस पनपने का सबसे ज्यादा खतरा होता है

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नई दिल्ली, 30 मई (आईएएनएस)। भारत में लगभग 60 प्रतिशत लोगों को लगता कि टॉयलेट में सबसे ज्यादा वायरस पनपता है। हालांकि 42 प्रतिशत लोग अपने पालतू जानवरों को अपने सोफे पर बैठने देते हैं, इस बात से अनजान कि जानवरों की त्वचा, फर, या पंख से वायरस पैदा होते हैं। मंगलवार को एक नए अध्ययन में ये बात सामने आई है।

वैश्विक उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स फर्म डायसन की ग्लोबल डस्ट स्टडी 2023 के अनुसार, जहां बाकी दुनिया में नियमित सफाई करने वाले लोगों की संख्या में काफी कमी देखी गई, वहीं वायरस के बारे में जागरूकता बढ़ने के चलते भारत में सफाई के प्रति लोगों का मोटिवेशन काफी बढ़ा है।

दो में से एक भारतीय डस्ट में वायरस की मौजूदगी से अवगत है, लेकिन केवल 32 प्रतिशत ही अपने लिविंग रूम, बेडरूम और रसोई जैसे क्षेत्रों से वायरस को खत्म करने के लिए सफाई को प्राथमिकता देते हैं।

डायसन में माइक्रोबायोलॉजी में रिसर्च साइंटिस्ट मोनिका स्टुकजेन ने कहा, सफाई करने वाले लोगों की संख्या में यह महत्वपूर्ण वृद्धि तब होती है जब वे डस्ट कणों को देखते हैं, यह चिंता का कारण है, क्योंकि कई डस्ट कण – बैक्टीरिया, हाउस डस्ट, मल सहित – आकार में सूक्ष्म होते हैं और नग्न आंखों से दिखाई नहीं देते।

जहां 45 फीसदी भारतीयों का मानना है कि किचन में वायरस रहते हैं, वहीं 70 फीसदी से ज्यादा लोग अपने किचन की सफाई करते समय वायरस को हटाने के बारे में सोचते ही नहीं हैं।

2022 में, केवल 31 प्रतिशत लोगों ने स्वच्छता को प्राथमिकता दी, हालांकि इस वर्ष 61 प्रतिशत प्रतिभागियों ने अपने घरों में डस्ट और गंदगी जमा होने के बारे में चिंता व्यक्त की।

लगभग 42 प्रतिशत व्यक्ति केवल तभी सफाई करने के लिए प्रेरित होते हैं जब फर्श पर धूल या गंदगी दिखाई देती है।

इसके अलावा, रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग 61 प्रतिशत लोगों का मानना है कि वैक्यूम क्लीनर डस्ट को साफ करने का सबसे प्रभावी तरीका है; इसलिए, वैक्यूम क्लीनर का स्वामित्व पिछले वर्ष की तुलना में 1.1 के औसत से बढ़कर 1.7 हो गया है।

स्टुजेन ने कहा, धूल को हटाने का सबसे अच्छा तरीका सीलिंग टेक्नोलॉजी से वैक्यूम क्लीनर का उपयोग करना है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि आप जो भी वैक्यूम करते हैं वह फंसा रहता है और घर में वापस नहीं निकाला जाता है।

इसके अलावा, रिपोर्ट में कहा गया है कि 25 से 44 वर्ष के आयु समूह में डस्ट से होने वाली एलर्जी के प्रति जागरूकता देखी गई है।

भारत में लगभग 43 प्रतिशत एयर प्यूरीफायर उपयोगकर्ता अपने घरों में हवा को साफ करने के लिए पूरे साल अपने एयर प्यूरीफायर का उपयोग करते हैं। मुंबई (51 प्रतिशत) और पुणे (50 प्रतिशत) सूची में सबसे ऊपर हैं।

लगभग 41 प्रतिशत का मानना है कि घरेलू धूल अस्थमा जैसी बीमारियों में योगदान करती है।

–आईएएनएस

एसकेपी

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