चेन्नई, 28 अगस्त (आईएएनएस)। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद अब सूर्य को करीब से जानने के लिए 2 सितंबर को पूर्वाह्न 11.50 बजे देश की पहली अंतरिक्ष-आधारित वेधशाला ‘आदित्य-एल1’ लॉन्च करेगा।
इसरो ने कहा कि आदित्य-एल1 को भारतीय रॉकेट पीएसएलवी-एक्सएल द्वारा ले जाया जाएगा।
अंतरिक्ष एजेंसी ने आंध्र प्रदेश में श्रीहरिकोटा स्थित अंतरिक्ष प्रक्षेपण केंद्र की गैलरी से प्रक्षेपण देखने के लिए आम लोगों को पंजीकरण करने के लिए आमंत्रित किया है।
प्रारंभ में, आदित्य-एल1 को पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित किया जाएगा। बाद में धीरे-धीरे इसकी कक्षा का उन्नयन किया जायेगा, और अंतत: पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकलकर सूर्य के करीब एल-1 प्वाइंट की ओर सफर शुरू करेगा।
लॉन्च से एल1 तक की यात्रा में आदित्य-एल1 को लगभग चार महीने लगेंगे और पृथ्वी से दूरी लगभग 15 लाख किमी होगी।
पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी लगभग 3.84 लाख किमी है।
इसरो ने कहा, “एल1 बिंदु के चारों ओर प्रभामंडल कक्षा में रखे गए उपग्रह को बिना किसी ग्रहण के लगातार सूर्य को देखने का प्रमुख लाभ मिलता है। इससे वास्तविक समय में सौर गतिविधियों और अंतरिक्ष मौसम पर इसके प्रभाव का अध्ययन संभव हो सकेगा।”
इसरो के अनुसार, अंतरिक्ष यान विद्युत चुम्बकीय और कण और चुंबकीय क्षेत्र डिटेक्टरों का उपयोग करके फोटोस्फीयर, क्रोमोस्फीयर और सूर्य की सबसे बाहरी परतों (कोरोना) का निरीक्षण करने के लिए सात पेलोड ले जायेगा।
एजेंसी ने बताया, “विशेष सुविधाजनक बिंदु L1 का उपयोग करते हुए चार पेलोड सीधे सूर्यमुखी होंगे और शेष तीन पेलोड लैग्रेंज बिंदु L1 पर कणों और क्षेत्रों का अध्ययन करेंगे।”
उम्मीद है कि मिशन से कोरोनल हीटिंग, कोरोनल मास इजेक्शन, प्री-फ्लेयर और फ्लेयर गतिविधियों और उनकी विशेषताओं, अंतरिक्ष मौसम की गतिशीलता, कण और क्षेत्रों के प्रसार और अन्य, भारतीय अंतरिक्ष की समस्या को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी।
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि सूर्य अनुमानतः 4.5 अरब वर्ष पुराना है और हाइड्रोजन तथा हीलियम गैसों की एक गर्म चमकती गेंद है जो सौर मंडल के लिए ऊर्जा का स्रोत है। सूर्य का गुरुत्वाकर्षण सौर मंडल की सभी वस्तुओं को एक साथ रखता है। सूर्य के मध्य क्षेत्र में, जिसे ‘कोर’ के रूप में जाना जाता है, तापमान 15 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है।”
इस तापमान पर कोर में परमाणु संलयन नामक प्रक्रिया होती है जो सूर्य को ऊर्जा प्रदान करती है। इसरो ने कहा कि सूर्य की दृश्य सतह जिसे फोटोस्फीयर के रूप में जाना जाता है, अपेक्षाकृत ठंडी है और इसका तापमान लगभग 5,500 डिग्री सेल्सियस है।
सूर्य निकटतम तारा है और इसलिए इसका अध्ययन अन्य तारों की तुलना में अधिक विस्तार से किया जा सकता है। इसरो ने कहा, सूर्य का अध्ययन करके, हम अपनी आकाशगंगा के तारों के साथ-साथ विभिन्न अन्य आकाशगंगाओं के तारों के बारे में भी बहुत कुछ जान सकते हैं।
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि आदित्य-एल1 द्वारा ले जाए जाने वाले सभी सात पेलोड देश में विभिन्न प्रयोगशालाओं द्वारा इसके निकट समन्वय में स्वदेशी रूप से विकसित किए गए हैं। विजिबल एमिशन लाइन कोरोनाग्राफ (वीईएलसी) उपकरण भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बेंगलुरु में विकसित किया गया है। इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनॉमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स, पुणे में सोलर अल्ट्रा-वायलेट इमेजिंग टेलीस्कोप (SUIT) उपकरण; भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद में आदित्य सौर पवन कण प्रयोग (एएसपीईएक्स); अंतरिक्ष भौतिकी प्रयोगशाला, विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम में आदित्य (पीएपीए) के लिए प्लाज्मा विश्लेषक पैकेज; यूआर राव सैटेलाइट सेंटर, बेंगलुरु में सोलर लो एनर्जी एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर और हाई एनर्जी L1 ऑर्बिटिंग एक्स-रे स्पेक्ट्रोमीटर पेलोड; और इलेक्ट्रो ऑप्टिक्स सिस्टम, बेंगलुरु की प्रयोगशाला में मैग्नेटोमीटर बनाया गया है।
–आईएएनएस
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