Friday, November 22, 2024

सदी के अंत तक एक मीटर बढ़ जाएगा समुद्र का स्तर, तटीय क्षेत्रों के 1.4 करोड़ से अधिक लोग होंगे प्रभावित : अध्ययन


नई दिल्ली, 21 नवंबर (आईएएनएस)। एक अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लाखों लोगों के लिए जोखिम बढ़ सकता है।

नेचर क्लाइमेट चेंज जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2100 तक समुद्र के स्तर में एक मीटर की बढ़ोतरी होगी। इससे वर्जीनिया के नॉरफॉक से फ्लोरिडा के मियामी तक दक्षिण पूर्व अटलांटिक तट पर 1.4 करोड़ से अधिक लोग प्रभावित हो सकते हैं।

इससे यह सामने आई है कि साल 2100 तक तटीय क्षेत्रों की 70 प्रतिशत आबादी उथले या उभरते हुए भूजल के संपर्क में आ सकती है, जो दैनिक बाढ़ से कहीं ज्यादा गंभीर खतरा होगा।

इस खतरे के कारण संपत्ति की कीमतों में लगभग एक ट्रिलियन डॉलर की गिरावट आ सकती है, जिससे सड़कों, इमारतों, सेप्टिक सिस्टम और अन्य बुनियादी ढांचे के लिए नई समस्याएं पैदा होंगी।

वर्जीनिया टेक के भूविज्ञान विभाग के मनोचेहर शिरजेई ने कहा कि इन संबद्ध खतरों का असर पहले के अनुमान से कहीं ज्यादा होगा।

शिरजेई ने कहा, “अगर मजबूत अनुकूलन उपाय नहीं किए गए, तो डूबती हुई जमीन और समुद्र तटों के नुकसान से बाढ़ का खतरा लाखों लोगों को विस्थापित कर सकता है और महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे को भी नुकसान पहुंचा सकता है।”

अमेरिकी भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण के सहयोग से किए गए अध्ययन में यह निष्कर्ष निकाला गया है कि समुद्र के स्तर में वृद्धि, बाढ़, समुद्र तटों का कटाव, डूबती हुई जमीन और बढ़ता हुआ समुद्र का जलस्तर जैसे जलवायु परिवर्तन से होने वाले तटीय खतरों के मिले-जुले प्रभाव का आकलन किया गया है। 21वीं सदी के अंत तक इन सभी खतरों के और बढ़ने की आशंका है।

शोधकर्ताओं ने यह भी बताया कि तटीय तूफान और समुद्री तूफान भूमि पर बाढ़ के खतरे को और बढ़ा देंगे। अगर समुद्र का स्तर एक मीटर बढ़ता है, तो बाढ़ के कारण क्षेत्र के 50 प्रतिशत लोग प्रभावित होंगे, जिससे संपत्ति की कीमतों पर 770 अरब डॉलर का असर पड़ेगा।

इससे दक्षिण पूर्व अटलांटिक क्षेत्र में 80 प्रतिशत रेतीले समुद्र तटों को नुकसान हो सकता है, जो अपने द्वीपों और तटीय पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए प्रसिद्ध हैं।

इसके अलावा, दक्षिण पूर्व अटलांटिक तट के कई इलाकों में जमीन रही है, जो समुद्र के बढ़ते प्रभावों को और भी गंभीर बना देता है।

शिरजेई ने कहा, “हमें यह फिर से सोचने की जरूरत है कि हम भविष्य के लिए कैसे योजना बनाते हैं और निर्माण करते हैं, खासकर तटीय क्षेत्रों में जो ज्यादा संवेदनशील हैं। अगर हम लचीलापन रणनीतियों में जलवायु खतरों की पूरी तरह से पहचान और ध्यान रखें, तो हम अपने समुदायों को समुद्र के स्तर में वृद्धि और मौसम की चरम घटनाओं के प्रभावों से बेहतर तरीके से बचा सकते हैं।”

–आईएएनएस

एसएचके/एकेजे


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