Home विदेश दो कमांडरों की सत्ता की भूख, सोने का अकूत भंडार… जिसने सूडान को गृहयुद्ध में धकेल दिया

दो कमांडरों की सत्ता की भूख, सोने का अकूत भंडार… जिसने सूडान को गृहयुद्ध में धकेल दिया

0
दो कमांडरों की सत्ता की भूख, सोने का अकूत भंडार… जिसने सूडान को गृहयुद्ध में धकेल दिया

[ad_1]

Sudan Civil War: भारत की राजधानी नई दिल्ली से करीब 4800 किमी दूर खार्तूम नाम का एक शहर है. ये अफ्रीकी महादेश के तीसरे सबसे बड़े देश सूडान की राजधानी है. पिछले दो हफ्ते से इस शहर और इसके आस-पास के शहरों के लोगों के दिन और उनकी रातें सिर्फ गोलियों और बम धमाकों की ही आवाजें सुनकर बीत रही हैं. लोग चीख रहे हैं. चिल्ला रहे हैं. जान बचाने की कोशिश में इधर-उधर भाग रहे हैं. कुछ ही हैं जो जान बचा पाए हैं. इस शक्ति संघर्ष में अब तक करीब 500 लोग अपनी जान गंवा भी चुके हैं.

ये सब इस देश की सेना के दो कमांडरों की सत्ता पर कब्जे के लिए लड़ाई की वजह से हो रहा है. इसकी जड़ में सोने का अकूत भंडार है. इसी स्वर्ण भंडार ने सूडान को गृहयुद्ध की तरफ धकेल दिया है. अब इस संघर्ष की आंच अमेरिका, रूस और ब्रिटेन ही नहीं बल्कि भारत पर भी पड़ रही है. इसकी वजह से भारतीय वायुसेना के सी-130 जैसे मिलिट्री ट्रांसपोर्ट एयरक्राफ्ट से लेकर नेवी के जहाज तक को सूडान में पहुंचना पड़ा है. आज गृहयुद्ध की आग में झुलस रहे इसी सूडान की कहानी पर बात करेंगे. 

सूडान में चल रही सत्ता पर कब्जे की जंग

सूडान देश का आधिकारिक नाम रिपब्लिक ऑफ सूडान है. इस देश के दक्षिण पश्चिम में सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक है. तो पश्चिम में चाड है. वहीं उत्तर में इजिप्ट है. उत्तर पूर्व में एरिट्रिया है. दक्षिण पूर्व में  इथियोपिया है. इसके उत्तर पश्चिम में लीबिया है. इस देश के दक्षिण में  दक्षिणी सूडान और पूरब में लाल सागर है.

इसका मतलब की इसके पूरब में पानी है और बाकी के तीन तरफ ये ज़मीन से घिरा है. जैसा कि नाम से ही जाहिर है रिपब्लिक ऑफ सूडान तो इस देश में लोकतंत्र है, लेकिन वो सिर्फ कहने के लिए है, क्योंकि देश की सत्ता न तो सेना के हाथ में है और न ही किसी नेता के हाथ में है. यहां कहने के लिए दोनों मिलकर सरकार चला रहे थे. इसे ट्रांजिशनल सोवरनिटी काउंसिल कहा जाता है. इसकी स्थापना 20 अगस्त, 2019 को हुई थी, लेकिन अब ये भी भंग है और सत्ता पर कब्जे की जबरदस्त जंग चल रही है.

कैसे हुई जंग की शुरूआत?

यहां इसकी शुरुआत अप्रैल 2019 में हुई थी. इस वक्त सूडान के राष्ट्रपति रहे ओमर अल बशीर की सत्ता का यहां की सेना ने तख्तापलट कर दिया था. राष्ट्रपति बशीर 1989 से ही मुल्क की सत्ता संभाल रहे थे और पर कब्जा करने के लिए उन्होंने भी सादिक अल महदी का तख्ता पलट ही किया था. सेना का कहना था कि 30 साल की सत्ता के दौरान ओमर अल बशीर निरंकुश हो गए हैं, लिहाजा उन्हें सत्ता से हटाना जरूरी था, लेकिन फिर सूडान में दिक्कत ये आई कि देश कौन चलाएगा.

आम लोग चाहते थे कि देश में फिर से चुनाव हो और लोकतांत्रिक प्रक्रिया बहाल हो. सेना चाहती थी कि नियंत्रण उसके हाथ में हो. इस वजह से करीब 4 महीने तक सेना और आम लोग आमने-सामने रहे. राजधानी खार्तूम में सूडान पर शासन करने के लिए बनी सेना की ट्रांजिशनल मिलिट्री काउंसिल ने आम लोगों का कत्ल-ए-आम कर दिया. बात बिगड़ने पर बातचीत हुई और फिर 5 जुलाई 2019 को तय हुआ कि सेना और प्रदर्शनकारी मिलकर  साल 2023 के आखिर में तब-तक सरकार चलाएंगे जब तक कि नए सिरे से चुनाव न हो जाए. 

सरकार चलाने के लिए बनाई टीएमसी

सेना की ओर से सरकार चलाने के लिए बनाई गई थी ट्रांजिशनल मिलिट्री काउंसिल यानी टीएमसी. प्रदर्शकारियों की ओर से बनाई गई थी फोर्सेज ऑफ फ्रीडम ऐंड चेंज यानी कि एफएफसी. 17 जुलाई को टीएमसी और एफएफसी के बीच लिखित समझौता हुआ. दोनों ओर से पांच-पांच लोगों का चयन किया गया था, जिन्हें मिलकर सूडान की सत्ता चलानी थी. इसके अलावा एक आदमी ऐसा था, जिसपर दोनों पक्षों को सहमति जतानी थी, जिसे सरकार का नेतृत्व करना था. तो दोनों ने मिलकर नाम तय किया अबदल्ला हैमडॉक का.

लेकिन सेना ने इस समझौते को एक साल बीतते-बीतते तोड़ दिया. अक्टूबर 2021 में सूडान की मिलिट्री ने अबदल्ला हैमडॉक की सरकार को बर्खास्त कर दिया और सत्ता अपने हाथ में ले ली. तब जनरल अब्देल फतह अल बुरहान सेना के कमांडर थे, तो वो देश के नए मुखिया बन गए. जनरल मोहम्मद हमदान डाग्लो हेमदाती सेना के डिप्टी कमांडर थे. तो वो देश के भी डिप्टी कमांडर बन गए. दोनों ने मिलकर तय किया कि वो सूडान की सत्ता पर तबतक काबिज रहेंगे, जब तक सूडान में नए सिरे से चुनाव न हो जाएं.

दो मिलिट्री कमांडर के बीच शुरू हुई लड़ाई

इस दौरान सेना का भी विरोध शुरू हो गया. ऐसे में सेना ने तय किया कि अबदल्ला हैमडॉक को फिर से सत्ता सौंप दी. लेकिन न तो सेना का दखल कम हुआ और न ही लोगों का विरोध प्रदर्शन. नतीजा ये हुआ कि हैमडॉक ने 2 जनवरी, 2022 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. सूडान फिर से मिलिट्री शासन के अधीन आ गया, लेकिन असली बवाल तब शुरू हुआ, जब मिलिट्री कमांडर जनरल अब्देल फतह अल बुरहान और डिप्टी कमांडर जनरल मोहम्मद हमदान डाग्लो के बीच लड़ाई शुरू हो गई. जनरल अब्देल फतह अल बुरहान सेना के कमांडर थे, वहीं जनरल मोहम्मद हमदान डाग्लो सेना के डिप्टी कमांडर होने के साथ ही सूडान की पैरामिलिट्री आरएसएफ यानी कि रैपिड सपोर्ट फोर्स के भी सुप्रीम कमांडर थे.

ये रैपिड सपोर्ट फोर्स साल 2013 में बनी थी और इसमें जो लड़ाके भर्ती हुए थे, वो आर्मी से न होकर  मिलिटेंट्स थे, जिन्होंने सूडान के लिए मिलिट्री के साथ मिलकर लैंड क्रूजर वॉर या कहिए कि डॉर्फर वार में हिस्सा लिया था. इसके बाद इन्हें सूडान की पैरामिलिट्री का हिस्सा बना दिया, जिसे रैपिड सपोर्ट फोर्स नाम दिया गया. जनरल मोहम्मद हमदान डाग्लो ने इसी रैपिड सपोर्ट फोर्स के करीब 10 हजार जवानों को सूडान की सेना में भर्ती करने का प्रस्ताव रखा. साथ ही साथ ये भी कहा कि सेना को अगले 10 साल तक सूडान पर अपना कब्जा बनाए रखना चाहिए. लेकिन जनरल अब्देल फतह अल बुरहान ने डाग्लो के इस प्रस्ताव को सिरे से खारिज कर दिया.

सूडान की सत्ता है मकसद

नतीजा दोनों के बीच टकराव हो गया. इस बीच डाग्लो ने रैपिड सपोर्ट फोर्स को पूरे देश में तैनात कर दिया. सूडान की सेना और उसके सुप्रीम कमांडर जनरल अब्देल फतह अल बुरहान ने इसे देश में पैरामिलिट्री के हस्तक्षेप की तरह देखा. और जिसका नतीजा ये है कि सूडान की आर्मी और पैरामिलिट्री फोर्स आमने-सामने आ गई. अब दोनों के बीच जंग चल रही है. दोनों के पास खतरनाक हथियार हैं, जिसका इस्तेमाल दोनों ही एक- दूसरे के खिलाफ कर रहे हैं.

इन दोनों का एक मकसद सूडान की सत्ता पर अपना कब्जा बनाए रखना है. ये दोनों अपना कब्जा क्यों चाहते हैं, इसकी जड़ में  सूडान की धरती में छिपा वो खजाना है, जिसे दुनिया सोना कहती है. सूडान में सोने की करीब 40 हजार खदानें हैं. ये खदानें जिसके कब्जे में हैं, उसके पास अथाह दौलत है. जिसके पास अथाह दौलत है, उसके पास अथाह ताकत भी है. क्योंकि सोना डॉलर में बिकता है. इस डॉलर का इस्तेमाल हथियारों की खरीद में होता है.

इससे साफ है कि जिसके पास ज्यादा सोना, उसके पास ज्यादा डॉलर और जिसके पास ज्यादा डॉलर उसके पास ज्यादा हथियार. जिसके पास ज्यादा हथियार है उसके पास ज्यादा ताकत है. तो चाहे वो सूडान की आर्मी के कमांडर जनरल अब्देल फतह अल बुरहान हों या फिर रैपिड सपोर्ट फोर्स के कमांडर जनरल मोहम्मद हमदान डाग्लो, दोनों को ही ये दौलत चाहिए. लिहाजा दोनों लड़ रहे हैं.

सत्ता की लड़ाई में दुनिया परेशान

इसकी वजह से दुनिया परेशान है. सूडान में अमेरिका के भी लोग हैं, ब्रिटेन के भी लोग हैं, फ्रांस के भी लोग हैं और भारत के भी लोग हैं. सबको वहां से निकालने की कोशिश जारी है. इस काम में भारत समेत दुनिया के तमाम देशों की मदद सऊदी अरब कर रहा है, क्योंकि सूडान से लगे लाल सागर के उस पार सऊदी अरब ही है. अमेरिका और ब्रिटेन समेत कुल 9 देश अपने-अपने डिप्लोमेट्स को सूडान से निकाल चुके हैं. अब भारत ने भी सूडान में फंसे करीब चार हजार लोगों को वहां से बाहर निकालने के लिए एक ऑपरेशन शुरू किया है. इसे कावेरी नाम दिया गया है 

सूडान का एयर स्पेस पूरी तरह से बंद है, लिहाजा भारतीयों को सूडान से निकलने के लिए पानी का रास्ता अपनाया जा रहा है और लाल सागर को पार कर उन्हें सऊदी अरब के जेद्दाह पहुंचाया जा रहा है. यहां इंडियन एयरफोर्स के दो C-130 विमान पहुंचे हुए हैं. वहीं सूडान से सऊदी अरब तक लाल सागर को पार करवाने के लिए इंडियन नेवी का आईएनएस सुमेधा सूडान के पोर्ट पर मौजूद है.

उम्मीद है कि जल्द ही सभी भारतीय सुरक्षित अपने वतन पहुंच जाएंगे, लेकिन सूडान में जिस तरह के हालात बन रहे हैं और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने जिस तरह से फिलवक्त सूडान के मामले से दूरी बना रखी है, उससे लगता है कि सूडान का ये संकट और लंबा खिंचेगा और लोकतंत्र जैसा शब्द वहां के लिए सिर्फ मजाक बनकर रह जाएगा.

ये भी पढ़ें: Sudan Crisis: सूडान में हिंसा से भारत संग रिश्तों पर कैसा पड़ रहा असर? जानिए सूडानी एंबेसडर ने क्या कुछ कहा

[ad_2]

Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here