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मुंबई, 9 अगस्त (आईएएनएस)। महिला शिक्षा के सबसे बड़े समर्थकों में से एक ज्योतिराव गोविंदराव फुले के जीवन पर आधारित फिल्म ‘फुले’ अपने पोस्ट-प्रोडक्शन चरण में प्रवेश कर गई है। इस फिल्म को निर्माता अनंत महादेवन नारायण बना रहे हैं।
फिल्म में महान भारतीय आइकन के जीवन पर प्रकाश डाला गया है। फिल्म ‘फुले’ में दिखाया जाएगा कि कैसे उन्होंने कठिन समय में महिलाओं को शिक्षा दिलाने के लिएसंघर्ष किया, वो भी तब जब भारत में विदेशी उत्पीड़न चरम पर था। उन्होंने जाति व्यवस्था के अन्याय के खिलाफ भी लड़ाई लड़ी।
अपनी फिल्म के बारे में बात करते हुए महादेवन ने वैरायटी को बताया कि ऐसे समय में जब लड़कियों को शिक्षा से वंचित किया जा रहा था, तब ज्योतिराव ने अपनी पत्नी को शिक्षित करने का फैसला किया, जो उस समय महज 11 साल की थी। ज्योतिराव गोविंदराव फुले उस समय 17 साल के थे। दोनों का उस समय बाल विवाह हुआ था।
उन्होंने कहा कि फिल्म एक ऐतिहासिक बायोपिक है, महादेवन ने कहा कि महिलाओं की शिक्षा और निचले तबके के लोगों के खिलाफ भेदभाव आज भी एक प्रचलित मुद्दा है।
निर्माता ने कहा कि हमने अभी भी इन मुद्दों को हल नहीं किया है, फिर चाहे यह भारत की बात हो या बाकी दुनिया की, लिंग भेदभाव और जातिगत भेदभाव आज हर जगह व्याप्त है। फुले परिवार पीढ़ियों से चली आ रही इस लड़ाई के प्रतीक बनकर उभरे हैं।
ज्योतिराव गोविंदराव फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई समाज सुधारक थे, जिन्हें सभी लोगों को शिक्षा दिलाने के प्रयासों के लिए जाना जाता है।
ज्योतिराव फुले आज भी भारत में एक महान व्यक्ति हैं, उनके बारे में एक तथ्य यह है कि वह वास्तव में गांधी से काफी पहले 1888 में ‘महात्मा’ की उपाधि पाने वाले पहले थे।
भारत में ‘महात्मा’ ज्योतिराव फुले ने 1848 में पुणे में महिलाओं की शिक्षा के लिए पहला स्कूल खोला। 1873 में ज्योतिराव फुले और उनके अनुयायियों ने वंचितों के अधिकारों के लिए लड़ा़ई लड़ी़।
महादेवन ने ‘अक्सर’, ‘अक्सर 2’, ‘अग्गर’ से लेकर ‘लाइफ्स गुड’ और ऐतिहासिक मराठी फिल्म ‘डॉक्टर राखमबाई’ जैसी जमीनी फिल्मों का निर्देशन किया है।
–आईएएनएस
एमकेएस/एसजीके
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