नई दिल्ली, 17 नवंबर (आईएएनएस)। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कोपरी-पाचपाखाडी विधानसभा सीट पर सियासी गहमागहमी तेज हो गई है। यह सीट प्रदेश की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। इस बार के चुनाव में इस सीट पर मुकाबला दिलचस्प नजर आ रहा है। ऐसे में अब सवाल है कि क्या इस बार भी कोपरी-पाचपाखाडी में एकनाथ शिंदे का जादू चलेगा?
कोपरी-पाचपाखाडी सीट ठाणे शहर की एक प्रमुख विधानसभा सीट मानी जाती है। यह सीट पहले शिवसेना का गढ़ रही है और यहां से शिवसेना के उम्मीदवारों ने लगातार जीत दर्ज की है। हालांकि, 2019 के विधानसभा चुनाव में कुछ बदलाव देखने को मिला, जब शिवसेना में अंदरूनी कलह और गठबंधन के मुद्दे उभरे। एकनाथ शिंदे तब शिवसेना के वरिष्ठ नेता थे। बाद में शिंदे ने शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे की विरासत को लेकर अलग रुख अपनाया और मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने अपनी शक्ति और संगठनात्मक काबिलियत का परिचय दिया।
कोपरी-पाचपाखाडी में इस बार का चुनावी मुकाबला दिलचस्प बन सकता है। शिंदे का नेतृत्व जिस तरह से शिवसेना से अलग होकर एकनाथ शिंदे गुट के रूप में उभरा है, उससे यहां के चुनावी समीकरण में बड़ा बदलाव आया है। एकनाथ शिंदे के पास इस बार भाजपा का समर्थन है और वह महाविकास आघाड़ी के उम्मीदवारों के मुकाबले मजबूत दिख रहे हैं। कोपरी-पाचपाखाडी क्षेत्र में एकनाथ शिंदे की पकड़ काफी मजबूत मानी जाती है, खासकर जब से उन्होंने 2019 में भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया। इसके चलते शिंंदे के साथ एक अच्छा वोट बैंक जुड़ गया। एकनाथ शिंदे की छवि एक स्थिर और विकासशील नेता के रूप में उभरी है, जिसने खास तौर पर इंफ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य, और शिक्षा के क्षेत्र में कई परियोजनाओं का शुभारंभ किया है।
कोपरी-पाचपाखाडी सीट से एकनाथ शिंदे ने एक बार फिर पर्चा भरा है। इस बार उनका मुकाबला शिवसेना उद्धव ठाकरे गुट के केदार दिघे से है। केदार दिघे शिवसेना के दिग्गज नेता आनंद दिघे के भतीजे हैं। कोपरी-पाचपाखाडी के इतिहास की अगर हम बात करें तो 2009 से 2019 तक इस सीट पर शिवसेना का दबदबा कायम रहा है।
महाविकास आघाड़ी, जो शिवसेना के पुराने गठबंधन का हिस्सा थी, अब खुद को अलग-अलग मुद्दों पर देखती है। शिवसेना के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनकी पार्टी ने अब इस सीट पर अपनी उम्मीदवारी तय करने में अपनी भूमिका निभाई है। कांग्रेस और एनसीपी भी इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए काम करेंगे, हालांकि शिंदे गुट के मुकाबले उनका प्रभाव काफी सीमित माना जा रहा है।
इस बार के चुनाव में शिंदे का राजनीतिक असर काफी निर्णायक होगा। उनके समर्थकों की संख्या पहले से कहीं अधिक बढ़ी है और उनकी छवि एक मजबूत नेता के रूप में उभरी है। इसके बावजूद, विपक्षी पार्टियों को भी लगता है कि अगर वे सही रणनीति अपनाते हैं, तो शिंदे के मजबूत किले को चुनौती दी जा सकती है। इस सीट पर अंतिम फैसला जनता के हाथ में होगा। शिंदे की कड़ी टक्कर उनके विरोधी उम्मीदवारों से होगी, जो इस बार अपनी रणनीति में बदलाव की कोशिश करेंगे।
आपको बताते चलें महाराष्ट्र में नई सरकार के गठन के लिए कुल 288 विधानसभा सीटों पर एक फेज में वोट डाले जाएंगे। सभी सीटों पर 20 नवंबर को वोटिंग होगी और 23 नवंबर को नतीजे घोषित किए जाएंगे।
–आईएएनएस
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